Stage Directions in Drama. Directors and actors work together to create a stage production. When and where the actors move can add to tension, provoke a …
क्प्त्म्ब्ज्प्व्छ
• नाटय निर्देशन •
निर्देशन के लिए जरूरी है कि वह स्वयं ही एक अच्छा कलाकार हो तथा मानव जीवन के सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों पर उसकी स्पष्ट समझ हो। समकालीन नाटय विध के विभिन्न धराओं की सामान्य जानकारी हो। क्षेत्राीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हलचलों के प्रति सम्वेदनशील हो तथा कला के क्षेत्रा में उनके प्रभावों पर पैनी नजर रखता हो और इसके साथ पुस्तकों के अèययन के प्रति गम्भीर हो।
• सै(ानितक •
• संस्कृत, हिन्दी तथा अन्य क्षेत्राीय भारतीय भाषाओं के नाटकों की विशिष्टता और वर्तमान में हो रहे प्रयोगों, परिवर्तनों के साथ तकनीकी परिकल्पना के परिवेशगत रूपान्तरण का अèययन करना • पाश्चात्य नाटक शैलियों का अèययन • विशेष रूप से शेक्सपीयर से व्रेख्त तक के नाटकों तथा रूसी-चीनी ;समकालीनद्ध ओपेरा का अèययन • भारत में हुए या चल रहे सामाजिक, राजनैतिक आन्दोलनों के नाटकों पर पड़े प्रभावों का अèययन • आज के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नाटकों की भूमिका का अèययन • मानव समाज और नाटयकला की प्रासंगिकता पर ऐतिहासिक मूल्यांकन : प्रारंभिक आदिम समाज से सभ्यताओं के विकास क्रम के संदर्भ में • नाटय और पिफल्म निर्देशन में अंतर तथा सन्दर्भित चुनौतियां • निर्देशन कला तथा अन्य कलाओं में सम्बंध् • साहित्य में नाटक का स्थान • सिनेमा और टी0वी0 संस्कृति के दौर में विभिन्न नाटय शैलियों के सामने अपनी पहचान व प्रासंगिकता बनाये रखने हेतु नर्इ चुनौतियां-एक गंभीर अèययन एवं सामूहिक परिचर्चा • निर्देशक, कलाकार, रंगमंचीय परिकल्पना तथा दर्शकों को दृषिट में रखते हुए विशेष पहुलओं का अèययन • नाटय कथानक के अन्र्तवस्तु को समझने तथा वैचारिक स्तर को उफंचा उठाने के लिए नाटय साहित्य के साथ विभिन्न तरह के स्तरीय साहित्य का अèययन व शिक्षकों के साथ परिचर्चा • शास्त्राीय, लोक व पाश्चात्य संगीत, नृत्य, वादन का सामान्य अèययन • निर्देशन प्रक्रिया के दौरान सावधनियां – एक अèययन • भिखारी ठाकुर के नाटय शिल्प के सभी आयामों का समग्र अèययन
• प्रायोगिक •
• दृषिट तथा नाटक का चुनाव और उनसे जुड़े भौतिक पक्ष • पात्रा तथा रंगमंचीय परिकल्पना • अभिनय, संवाद, दृश्य, श्रव्य आदि का त्राुटिहीन संयोजन • मंचीय प्रस्तुति तथा परिवेशगत यथार्थ का सामंजस्य • निर्देशक : निर्देशन के साथ दर्शक बतौर मूल्यांकनकर्ता के रूप में भी। • नाटय शैलियों के अनुरूप सभी तकनीकी पक्ष का प्रायोगिक ज्ञान • मेकअप, प्रकाश, èवनि, रंगमंच के स्वरूप के साथ संगीत, नृत्य आदि का भी सामान्य प्रायोगिक ज्ञान • नाटकों में नये प्रयोग का अभ्यास • किसी नाटक का चुनाव करके समूह में कलाकारों के साथ बातचीत व बहस में हिस्सा लेना तथा नाटक के समग्र पहलू पर मूल्यांकन प्रस्तुत करने की योग्यता हासिल करना • विशेष स्थान का चुनाव करके वहां की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक व अन्य पृष्ठभूमि का अवलोकन तथा वहां से विशेष चरित्राों का चुनाव करके उनको अभिव्यक्त करने वाले मौलिक सम्वादों का गठन, अंग संचालन व भावमुद्राओं का प्रकटीकरण • प्रशिक्षणार्थी को निर्देशन के क्षेत्रा में सम्वेदनशील तथा सोच के दायरे को व्यापक बनाना • नुक्कड़ नाटक, लोकनाटक, रंगमंचीय नाटक आदि के सभी पक्षों का प्रायोगिक ज्ञान प्राप्त करना तथा उनके बीच के अन्तर को शोधर्थी के रूप में समझना • नाटक तथा समय समायोजन की कला सीखना • जन-जीवन, नाटक एवं निर्देशन के बीच एकरूपता हासिल करने में सि(हस्त होना • मंचीय या किसी भी शैली की नाटय प्रस्तुति की प्रक्रिया में नेतृत्वकारी पहल की क्षमता विकसित करना • गंभीर नाटकों की प्रस्तुति में सृजनात्मकता, कलात्मकता जैसे पहलुओं पर विशेष योग्य बनाना • रंगमंच पर गतिसंचालन, अभिव्यकित, èवनि वेश-भूषा, प्रकाश व्यवस्था, पटाक्षेप, आध्ुनिक-परम्परागत वाध-यंत्राों के प्रयोग आदि में होनेवाली गलतियों को पकड़ने की क्षमता हासिल करना • नाटय मंचन से जुड़े कलाकारों तथा तकनीकी सहयोगियों के बीच टीम भावना विकसित करने की समझ हासिल करना • दर्शकों के सन्दर्भ में निर्देशन की भूमिका के प्रति सजगता, संवेदनशीलता, संवाद ग्राáता, कथ्य-प्रस्तुति ग्राáता आदि के संबंध् में व्यापक सोच को विकसित करना • नाटक प्रारम्भ होने के पहले दर्शकों पर सृजनात्मक प्रभाव छोड़ने की क्षमता विकसित करने हेतु अभ्यास • प्रसि( भारतीय तथा विदेशी नाटककारों और कलाकारों में से किन्हीं दो पर अपना शोध् पक्ष कम से कम 20 पृष्ठों में प्रस्तुत करना • भिखारी ठाकुर के विदेसिया शैली पर विशिष्टता हासिल करना